आरक्षण जाति नहीं, पिछडेपन से मिले
जयपुर। हाईकोर्ट ने कहा है कि अब मौजूदा आरक्षण व्यवस्था पर मंथन का समय आ गया है, आरक्षण जाति के आधार पर नागरिकों को बांटने वाला नहीं, बल्कि सही मायने में पिछड़ों को लाभ देने वाला होना चाहिए। इससे ही संविधान की भावना का सही मायने में पालन हो सकेगा। साथ ही, कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़ा वर्ग की महिलाओं को सामान्य महिला कोटे में नियुक्ति नहीं दी जा सकती।
न्यायाधीश मनीष भण्डारी ने लक्ष्मी कंवर व अन्य की महिला आरक्षण से सम्बन्घित 120 याचिकाओं को निस्तारित करते हुए यह आदेश दिया है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी वर्ग की महिला को उसके वर्ग के कोटे में ही आरक्षण का लाभ मिल सकता है, क्योंकि यह आरक्षण महिलाओं को पुरूष्ाों से कमजोर होने के कारण दिया गया है। हर वर्ग में महिलाओं का स्तर ऊंचा उठाने की जरूरत है, चाहे वह सामान्य वर्ग की हो या एससी, एसटी या ओबीसी की। कोर्ट ने इसी व्यवस्था के आधार पर मेरिट तैयार करने को कहा है।
महिलाओं को आरक्षण नहीं, विशेष्ा प्रावधान
कोर्ट ने कहा, सवाल यह है कि महिलाओं के कोटे को आरक्षण माना जाए या विशेष्ा प्रावधान। संविधान के अनुच्छेद 15 (3) में महिला व बच्चों के लिए विशेष्ा प्रावधान करने की सरकार को छूट दी है, इसे आरक्षण नहीं माना जा सकता। इसके विपरीत अनुच्छेद 16 (2) के तहत नौकरियों में लिंग के आधार पर अंतर नहीं किया जा सकता। दोनों प्रावधानों की सद्भावपूर्ण तरीके से व्याख्या नहीं की तो दोनों विरोधाभाष्ाी हो जाएंगे। इस मामले में आरक्षण के सामान्य प्रावधान लागू नहीं किए जा सकते।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भी इन्द्रा साहनी मामले में महिला आरक्षण को अनुच्छेद 15 (3) के तहत संरक्षित नहीं किया है। महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत पद आरक्षण नहीं है, बल्कि यह प्रावधान केवल प्राथमिकता है। ऎसे में इन पदों को दूसरे वर्ग की महिलाओं से नहीं भरा जा सकता, क्योंकि ये पद वर्ग विशेष्ा की कमजोर महिलाओं को आगे लाने के लिए हैं।
विधवा-परित्यक्ता सीट महिला अनुपात में ही
कोर्ट में राज्य सरकार ने माना कि विधवा और परित्यक्त महिलाओं का आठ व दो प्रतिशत आरक्षण का कोटा महिलाओं की सीटों के हिसाब से ही गिना जाएगा, न कि कुल पदों के हिसाब से।
सरकार का यह पक्ष आने के बाद कोर्ट ने इस आरक्षण से सम्बन्घित उन याचिकाओं को भी निस्तारित कर दिया, जिनमें विधवा व परित्यक्त महिलाओं के पद कुल पदों के हिसाब से तय किए जाने को चुनौती दी गई थी।
इन भर्तियों पर पड़ेगा असर
तृतीय श्रेणी शिक्षक, द्वितीय श्रेणी शिक्षक, स्कूल व्याख्याता, प्रधानाध्यापक, फार्मासिस्ट भर्ती।
जयपुर। हाईकोर्ट ने कहा है कि अब मौजूदा आरक्षण व्यवस्था पर मंथन का समय आ गया है, आरक्षण जाति के आधार पर नागरिकों को बांटने वाला नहीं, बल्कि सही मायने में पिछड़ों को लाभ देने वाला होना चाहिए। इससे ही संविधान की भावना का सही मायने में पालन हो सकेगा। साथ ही, कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़ा वर्ग की महिलाओं को सामान्य महिला कोटे में नियुक्ति नहीं दी जा सकती।
न्यायाधीश मनीष भण्डारी ने लक्ष्मी कंवर व अन्य की महिला आरक्षण से सम्बन्घित 120 याचिकाओं को निस्तारित करते हुए यह आदेश दिया है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी वर्ग की महिला को उसके वर्ग के कोटे में ही आरक्षण का लाभ मिल सकता है, क्योंकि यह आरक्षण महिलाओं को पुरूष्ाों से कमजोर होने के कारण दिया गया है। हर वर्ग में महिलाओं का स्तर ऊंचा उठाने की जरूरत है, चाहे वह सामान्य वर्ग की हो या एससी, एसटी या ओबीसी की। कोर्ट ने इसी व्यवस्था के आधार पर मेरिट तैयार करने को कहा है।
महिलाओं को आरक्षण नहीं, विशेष्ा प्रावधान
कोर्ट ने कहा, सवाल यह है कि महिलाओं के कोटे को आरक्षण माना जाए या विशेष्ा प्रावधान। संविधान के अनुच्छेद 15 (3) में महिला व बच्चों के लिए विशेष्ा प्रावधान करने की सरकार को छूट दी है, इसे आरक्षण नहीं माना जा सकता। इसके विपरीत अनुच्छेद 16 (2) के तहत नौकरियों में लिंग के आधार पर अंतर नहीं किया जा सकता। दोनों प्रावधानों की सद्भावपूर्ण तरीके से व्याख्या नहीं की तो दोनों विरोधाभाष्ाी हो जाएंगे। इस मामले में आरक्षण के सामान्य प्रावधान लागू नहीं किए जा सकते।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भी इन्द्रा साहनी मामले में महिला आरक्षण को अनुच्छेद 15 (3) के तहत संरक्षित नहीं किया है। महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत पद आरक्षण नहीं है, बल्कि यह प्रावधान केवल प्राथमिकता है। ऎसे में इन पदों को दूसरे वर्ग की महिलाओं से नहीं भरा जा सकता, क्योंकि ये पद वर्ग विशेष्ा की कमजोर महिलाओं को आगे लाने के लिए हैं।
विधवा-परित्यक्ता सीट महिला अनुपात में ही
कोर्ट में राज्य सरकार ने माना कि विधवा और परित्यक्त महिलाओं का आठ व दो प्रतिशत आरक्षण का कोटा महिलाओं की सीटों के हिसाब से ही गिना जाएगा, न कि कुल पदों के हिसाब से।
सरकार का यह पक्ष आने के बाद कोर्ट ने इस आरक्षण से सम्बन्घित उन याचिकाओं को भी निस्तारित कर दिया, जिनमें विधवा व परित्यक्त महिलाओं के पद कुल पदों के हिसाब से तय किए जाने को चुनौती दी गई थी।
इन भर्तियों पर पड़ेगा असर
तृतीय श्रेणी शिक्षक, द्वितीय श्रेणी शिक्षक, स्कूल व्याख्याता, प्रधानाध्यापक, फार्मासिस्ट भर्ती।
साभार: राजस्थान पत्रिका, जयपुर एडिशन, दिनांक २१/०३/२०१३
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