फार्मासिस्ट एक्ट की पालना नहीं कर रही सरकार : शिवराज / 2 अक्टूबर से नि:शुल्क दवा वितरण में हुई अनदेखी तो कोर्ट की शरण लेंगे
बीकानेर। राजस्थान सरकार द्वारा आगामी 2 अक्टूबर से नि:शुल्क दवा वितरण नीति में ठेका पध्दति से फार्मासिस्टों की नियुक्ति के विरोध व स्थायी नियुक्ति की मांग सहित प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों में दवा वितरण सम्बन्धी कार्यों में फार्मेसी एक्ट की अनुपालना सम्बन्धी मुद्दे पर फार्मासिस्टों की एक बैठक का आयोजन यहां बिश्नोई धर्मशाला में भाजपा के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष शिवराज बिश्नोई की अध्यक्षता में हुआ।
बैठक में अपनी विभिन्न मांगों मौजूद कानून की राजस्थान सरकार द्वारा अनुपालना में आनाकानी के कारण फार्मासिस्टों के हितों पर हो रहे कुठाराघात पर अनेक वक्ताओं ने विचार रखे वहीं इसी कड़ी में बगैर फार्मासिस्ट के दी जाने वाली दवाओं से आमजन के जीवन से होने वाले खिलवाड़ पर भी चर्चा हुई। तत्पश्चात् पत्रकारों से बातचीत में बिश्नोई के साथ सचिव फकीर मो. खिलजी व वॉर ऑफ फार्मासिस्ट राइट्स के लोकेश कुमार गौतम ने संयुक्त रुप से बताया कि केन्द्र सरकार के फार्मेसी एक्ट 1948 के सैक्शन 42 के तहत एक पंजीकृत फार्मासिस्ट ही दवा का वितरण व भण्डारण कर सकता है, इसके अलावा कोई भी व्यक्ति इस कार्य को करता है तो उसे 6 माह की सजा व एक हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है। बिश्नोई ने बताया कि ड्रग एक्ट 1950 के मुताबिक दवा का वितरण व भण्डारण फार्मासिस्ट की देखरेख में ही हो सकता है। राजस्थान स्टेट के अलावा भारत के सभी प्रदेशों में उपरोक्त कार्य रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट द्वारा ही सम्पादित किए जा रहे हैं। परन्तु राजस्थान इस केन्द्र के कानून को अनदेखा कर आम जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। बिना फार्मासिस्ट के दवा वितरण को एक अपराध बताते हुए शिवराज ने बताया कि सरकार ने 1982 के बाद फार्मासिस्ट की एक भर्ती नहीं की है, क्योंकि फार्मासिस्ट का पद और सर्विस रुल सेवा नियमों में सम्मिलित नहीं है। यह कानून की पालना की सरकार की अनदेखी है। प्रदेश में केवल ‘फार्मासिस्ट कम कम्पाऊण्डर’ के नाम से वर्ष 1982 में भर्ती की थी जिसकी योग्यता ‘आरएनआरसी ट्रेन्ड नर्स ग्रेड-द्वितीय विथ थ्री इयर एक्सपिरियंस और डिप्लोमा इन फार्मेसी’ है। उपरोक्ता योग्यताओं में से प्रदेश सरकार ने वर्तमान में केवल डिप्लोमा इन फार्मेसी और डिग्री इन फार्मेसी को ही फार्मासिस्ट पद के लिए योग्य माना है, सेवा नियमों में संशोधन आज भी नहीं है। सरकार के अनुसार राजकीय चिकित्सा संस्थाओं में दवाईयों का भण्डारण किया जाता है तथा इन सभी पर सुपरविजनप्रभारी के रुप में फार्मासिस्ट होने चाहिए जिसकी योग्यता ‘बी फार्मा एवं डी फार्मा’ है, जो राजस्थान फार्मेसी कौंसिल से रजिस्टर्ड होने चाहिए। वर्तमान में इनकी संख्या 33 हजार है। फिर भी इस संस्थाओं में फार्मासिस्ट का पद नहीं है। बिश्नोई ने पत्रकारों को बताया कि सरकार ने नि:शुल्क दवा वितरण प्रणाली में फार्मासिस्टों की बजाए कम्पाऊण्डर्स, बाबू का इस्तेमाल किया तो वे कोर्ट से स्टे लाकर इस नीति का विरोध करेंगे। साथ ही वे फार्मासिस्टों की महाराष्ट्र एवं केरल प्रदेशों की भांति स्थायी नियुक्ति की भी मांग करेंगे
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